उन के दिए ज़ख्म
उन के दिए ज़ख्म
ख़ामोशी से सी चुके हैं हम
अब वो लौट के आयें भी तो क्या
बहुत दूर निकल चुके हैं हम
अब कोई चाहत ही नहीं
उन से रूबरू होने की
दर्द आँसुओं के साथ पी चुके हैं हम
हिमांशु Kulshrestha
उन के दिए ज़ख्म
ख़ामोशी से सी चुके हैं हम
अब वो लौट के आयें भी तो क्या
बहुत दूर निकल चुके हैं हम
अब कोई चाहत ही नहीं
उन से रूबरू होने की
दर्द आँसुओं के साथ पी चुके हैं हम
हिमांशु Kulshrestha