उन्मुक्त परिंदे
****** उन्मुक्त परिंदे ******
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कितने दिखते हैं खुश परिंदे
खुले आसमां में उन्मुक्त परिंदे
लंबी- लंबी उड़ाने रहें भरते हैं
जहाँ चाह उसी डगर चलते हैं
मनचाही मन से कृति करते हैं
विचरण करते हैं उन्मुक्त परिंदे
खुले आसमां में उन्मुक्त परिंदे
दाना -पानी रहें दिल से चुगते
नीड़- कुटुम्ब में हर्षित हैं रहते
झुंड में रह हर संकट रहें हरते
मनमर्जी करते उन्मुक्त परिंदे
खुले आसमां में उन्मुक्त परिंदे
प्रकृति रंगों का लुत्फ उठाते
कलरव की मधुर ध्वनि करते
आसमान सिर पर उठा लेते
नभ में नभचर उन्मुक्त परिंदे
खुले आसमां में उन्मुक्त परिंदे
गगनचर गगनचुंबी तक उड़ते
व्योमचारी व्योम भ्रमण करते
कतारो में मीलों उड़ाने भरते
सितारों को छुएं उन्मुक्त परिंदे
खुले आसमां में उन्मुक्त परिंदे
पंछी की कोई ओर चाह नहीं
यही है दुनिया,जुदा राह नहीं
प्रकृति ईश्वर से कोई रंज नहीं
दुनिया में मस्त उन्मुक्त परिंदे
खुले आसमां में उन्मुक्त परिन्दे
अहेरी जाल में विहग हैं फंसते
पिंजरे में खग कभी नहीं हँसते
मनसीरत रंज में रहें आहें भरते
आजादी आदी हैं उन्मुक्त परिंदे
खुले आसमां में उन्मुक्त परिन्दे
कितने दिखते हैं ये खुश परिंदे
खुले आसमान में उन्मुक्त परिंदे
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)