उन्मुक्त गगन के हम पक्षी
पंख फैलाये उड़ जा पक्षी ,
दूर देश तुम चलते जाओ !
अपने जैसे लोग जहाँ हों ,
उनके साथ ही समय बिताओ !!
जहाँ बंधन ना हो ,
ना कोई पहरा ,
अंकुश ना हो ,
ना जख्म हो गहरा !!
जहाँ बंधन ना हो ,
ना कोई पहरा ,
अंकुश ना हो ,
ना जख्म हो गहरा !!
दिल ना दुखे अपनों से कभी ,
उन्मुक्त गगन में तुम उड़ जाओ !
अपने जैसे लोग जहाँ हो ,
उनके साथ ही समय बिताओ !!
सीमा ना हो ,
ना कोई दीवारें ,
ना आँगन हो ,
ना चौबारें !!
सीमा ना हो ,
ना कोई दीवारें ,
ना आँगन हो ,
ना चौबारें !!
खुले गगन में उड़ जाओ निश-दिन ,
नितदिन नव सुंदर घोंसला बनाओ !
अपने जैसे लोग जहाँ हों ,
उनके साथ ही समय बिताओ !!
धर्मों से हमको क्या ,
सबके हम प्रेमी हैं ,
मंदिर ही नहीं ,
मस्जिद के भी स्नेही हैं !!
धर्मों से हमको क्या ,
सबके हम प्रेमी हैं ,
मंदिर ही नहीं ,
मस्जिद के भी स्नेही हैं !!
तुम उड़कर गुंबज पर धुनी रमाओ ,
कभी स्तूपों पर तुम चढ़ जाओ !
अपने जैसे लोग जहाँ हो ,
उनके साथ ही समय बिताओ !!
धन दौलत से ,
कहो क्या करना ?
दिनभर घूम के ,
दाना चुगना !!
धन दौलत से ,
कहो क्या करना ?
दिनभर घूम के ,
दाना चुगना !!
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
दुमका ,
झारखंड
भारत