उन्तालीस साल।
बहती धारा सा लगा कभी,
कभी लगा ये जीवन जी का जंजाल,
बिन मांगे मिले कुछ जवाब कभी,
कुछ आज भी अनसुलझे हैं सवाल,
खट्टे-मीठे अनुभवों से सजा ये जीवन,
समझ से परे है इसकी चाल,
बुलबुले सा ये जीवन फिर भी,
अपने-आप में है कमाल,
इससे पहले कि थम जाएं सांसें,
धड़कने भी हो जाएं बेहाल,
जी भर के मैं जी लूं इसको,
हर पल को बना लूं बेमिसाल,
फ़िलहाल तो सफ़र ये जारी है मेरा,
कि पूरे हुए आज उन्तालीस साल।
कवि-अम्बर श्रीवास्तव।