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2 Jan 2023 · 1 min read

प्रीति के दोहे, भाग-3

उनसे बोलो प्रेम की,क्या करता फरियाद।
समझ न पाए जो कभी,आँखों का संवाद।।21
तन का तो सौंदर्य बस,रहता है दिन चार।
प्रेम गुणों से कीजिए ,छाई रहे बहार।।22
मात्र दिखावे के लिए,जब होता है प्यार।
तभी परस्पर हो शुरू ,अंतहीन तकरार।।23
जब से नयनों ने किया,नयनों से परिहास।
अंतस् में है वेदना ,मुख पर है उल्लास।।24
कभी जीत में हार है ,कभी हार में जीत।
इस दुनिया में प्यार की,बड़ी अनोखी रीत।।25
हर चेहरे को देखकर,मत रीझो सरकार।
प्रेम परिधि में काम ये,कहलाता व्यभिचार।।26
विस्तृत पावन प्रेम है, जिसका आदि न अंत।
कहते ज्ञानी संत जन,नभ – सा प्रेम अनंत।।27
प्रेम उदधि – सा सर्वदा,होता अति गंभीर।
दिव्य गुणों का कोष ये,रखता अपने तीर।।28
प्रेम कराता है मिलन,प्रेम विरह का मूल।
प्रेम जगत का सार है,बात कभी मत भूल।।29
पुष्प गंध सम प्रेम की,रहती सबको चाह।
कठिन दौर में प्रेम ही,दिखलाता है राह।।30
डाॅ बिपिन पाण्डेय

Language: Hindi
1 Like · 308 Views

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