उनके हिरदे धाम मेरा
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* उनके हिरदे धाम मेरा *
खिलते हैं फूल बसंत बहार
जिनकी कृपा से
उनके अधरों पर नाम मेरा
गौरी-शिवा को राम-सिया को
मंदिर के दिया को
शत-शत है परनाम मेरा
गौरी-शिवा को राम-सिया को . . . . .
छेड़े है मेरे बालों को
चूमे है मेरे गालों को
मैं लजवंती न जानूं
प्रीतपवन की चालों को
छूकर के आई है उन्हें
शीतल समीर जो
रही अंग-अंग पहचान मेरा
गौरी-शिवा को राम-सिया को . . . . .
बिन पैंजनिया छनन-छनन
मेरा न रहा अब मेरा मन
कल रात अकेली छोड़ गया
साथ मेरा मेरा बचपन
उगती सवेर में उड़ने के फेर में
छूटा ही जाए अब
गाम मेरा
गौरी-शिवा को राम-सिया को . . . . .
तारों बीच सुहाया चाँद
आया घर मेरे दीवारें फांद
क्या बोलूं मैं लाज लगे
क्या संदेसा लाया चाँद
नयन मुंदे मद से मेरे
उनके हिरदे हे प्रभु
अब से हुआ है धाम मेरा
गौरी-शिवा को राम-सिया को . . . . . !
वेदप्रकाश लाम्बा ९४६६०-१७३१२