उनके आने से ही बहार आए
उनके आने से ही बहार आए
और दिल को मेरे क़रार आए
अश्क आंखों से बह गए उस दम
डोली लेकर के जब कहार आए
इस जहां से चले गए जो भी
लौटकर फिर न बार-बार आए
अब कहां याद कोई आता है
सारी यादें तो हम बिसार आए
हर तरफ़ शोर और शराबा था
वक़्त ऐसा भी हम गुज़ार आए
शाद जबतक न हो कोई इस्लाह
शाइरी में कहां निखार आए
डॉ० फ़ौज़िया नसीम ‘शाद’