उनकी महक से मौसम भी बहकने लगा
उनसे मिलकर ख़ुशी कुछ ऐसी मिली,
कि होठों के साथ आँखें भी मुस्काने लगीं।
पल भर के लिए नज़रों को उनका दीदार क्या हुआ,
नशा कुछ ऐसा चढ़ा कि ख़ामोशी गुनगुनाने लगी।
जाने उनका क्या असर हुआ है रूह पर,
अब तो रुस्वाइयाँ भी उन्हें बुलाने लगीं।
उनके चेहरे पर मायूसी बिलकुल बर्दाश्त नहीं होतीं,
कि अब तो हमारी नाराज़गियां भी उन्हें मनाने लगीं।
उनकी महक से तो ये मौसम भी बहकने लगा,
अब तो हवाएँ भी तरन्नुम में आने जाने लगीं।
————- शैंकी भाटिया
सितम्बर 23, 2016