उनकी आँखों में प्यार देख लिया
उनकी आँखों में प्यार देख लिया
दिल का खोया क़रार देख लिया
और कितना उन्हे मनायें हम
कर के कोशिश हज़ार देख लिया
जिसने खाई वफ़ा की कस्में थीं
बेवफ़ा है वो यार देख लिया
किस तरह आदमी परेशां है
इस सियासत का वार देख लिया
क्या गवाही है क्या अदालत है
झूठ का कारोबार देख लिया
सच ने छिपकर के जाँ बचाई है
झूट जब बेशुमार देख लिया
मैं न मौज़ूद था कहीं उसमें
आइना बार-बार देख लिया
वक़्ते-मुश्किल में काम आया कब
दोस्त वो जाँनिसार देख लिया
अब तो आराम कर ज़रा ‘आनन्द’
ज़ीस्त का इंतज़ार देख लिया
– डॉ आनन्द किशोर