उनकी आँखों में एक नशा सा है
उनकी आँखों में एक नशा सा है
उनकी ना मेरे लिए सजा है
उनको नाज़ाने कैसा शिकवा है
साथ उनके जीने में ही तो मजा है
ना देखे हुए उनको हुआ अरसा है
तब से ज़िन्दगी भी मुझसे ख़फा है
ये कैसा दर्द भीतर छिपा हुआ है
मरहम पास उनके थोड़ा रखा है
तपीश में उनकी जल गया जिस्म
अब तो राख का उड़ता धुँआ है
नाजने ये कैसी हुई खता है
जिसका फल मुझे मिला है
उसकी यादे ही तो जीने की वजह है
उसके सहारे ही तो ये जिस्त ज़िंदा है
मरने की अब किसको परवाह है
अब तू ही बता और तेरी क्या रज़ा है
भूपेंद्र रावत
19।11।2017