उधेड़-बुन
मुक्तक
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मन में सदा उधेड़-बुन , चलती है अविराम।
इसके बिन किसका यहां, हो पाता कुछ काम।
यही निभाता हर जगह, जीवन भर का साथ।
बिन इसके संभव नहीं, सुबह दोपहर शाम।
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सही गलत हर बात तो, रहती मन में नित्य।
किन्तु कभी होता नहीं, अनुचित का औचित्य।
क्रम उधेड़-बुन का यहां, चलता हरपल साथ।
और रचा जाता सहज, मनभावन साहित्य।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य