उधार की जिंदगी
मन है कहीं और ही बसता
तन उदास है मधुवन में ,
जीवन अब उधार सा लगता
कान्हा अब तेरे उपवन में ।
बेशक राधा के हुए नहीं
मीरा भी नहि तेरी हुई,
इनकी जैसी अनेकों सखिया
बाट जोहती तेरी रही।
उसी राह की पथिक बनी
ढूढ़ रही तुमको हो विह्वल,
हुए बस्त्र सब तार – तार
मैली हुईं हमारी आँचल।
यह सत्य मुझे भी था पता
फिर भी एक जिद ठानी थी,
रही है आदत सदा हमारी
सदा लीक से हट चलने की।
प्राण निकलने तक प्रण मेरा
अबाध चलेगा सुनो कन्हैया ,
तुमने मैया की बात न मानी
पर कह चुकी है मेरी मैया।
सुना है जनको को तुमने
व्यापक सुख बेशक है दिया,
साथ बताते लोग है मुझको
पर उनको है बहुत सताया।
मेरा कृत्य है तुमसे अच्छा
कहना कुछ ज्यादा ही होगा,
नही मिले जो शीघ्र मुझे
सोचो मेरा तब क्या होगा।
निर्मेष तुम्ही से मेरा आज
और तुम्ही से कल भी होगा,
सरसो सारे है फूल चुके
तेरे आने से मधुबन होगा।
निर्मेष