उधार का ज्ञान – रविकेश झा
उधार का ज्ञान
हम प्रतिदिन अपने जीवन जी रहे हैं और प्रतिदिन अपना कामना को पूर्ण कर रहे हैं। लेकिन हम अधिक वही कार्य करते हैं जो सामने वाले को अच्छा लगे उन्हें खुश करने में लगे रहते हैं। बहुत ऐसे भी व्यक्ति जो अपने बुद्धि और तर्क से स्वयं कुछ पहचान बनाने में कामयाब हो जाते हैं। लेकिन बहुत कम लोग को ही नसीब होता है स्वयं के बल पर कुछ कार्य करना, लेकिन एक बात यह है कि जो दूसरों को खुश और धनवान बनाने में लगे रहते हैं उनका कोई दोष भी नहीं है क्योंकि उन्हें पता भी नहीं चलता की हम बुद्धि का प्रोयोग करके हम भी खोजें वो सोचते हैं भगवान ने जो किया है कुछ अच्छा ही सोचे होंगे हमारे लिए,वह अंधकार में जीना पसंद करते हैं दूसरे के ज्ञान पर चलते हैं कुछ ऐसे भी हैं जो महारथ हासिल किया है स्वयं को सफल बनाएं हुए है और वो बुद्धि तर्क में जीते है।
लेकिन हम सब उधार का ज्ञान लिए हुए घूम रहे हैं, दूसरों के पुस्तक से पढ़े हैं और मानते चले जाते हैं, हृदय वाले भी दूसरों के बात पर चलते हैं और बुद्धिमान व्यक्ति भी लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो दोनों के पार चले जाते हैं, वह जानते रहते हैं अंत तक खोजते रहते हैं और वह भी दोनों में अनुभव लेते हैं और दोनों में अपना सहमति देते हैं।
लेकिन जितना भी पुस्तक लिखा गया है सब आंतरिक से उत्पन्न हुआ है संजोग नहीं कह सकते क्योंकि बहुत लोग पहुंचे हैं इसलिए परिवर्तन भी आया है मनुष्य में लेकिन बस बाहरी पुस्तक से हमें ज्ञान नहीं हो सकता अगर हम पुस्तक पढ़ के मान रहे हैं तो वह आपका विचार है आप खोजें नहीं है बस शब्द चुराए हुए है और मान लेते हैं लेकिन हमें आंतरिक खोज करना होगा तभी हम श्रोत को समझ सकते हैं।
क्योंकि जितना भी पुस्तक लिखा गया है सब आंतरिक श्रोत के कारण और फिर भी हम पुस्तक में ज्ञान ढूंढ रहे हैं अगर आप पुस्तक को पढ़ के ज्ञानी समझ रहे हैं तो आप मूर्ख के श्रेणी में आते है। क्योंकि आपने जाना नहीं है बस पढ़ा है उससे आप मानने में लगे हैं की सत्य ही होगा महापुरुष ने लिखे हैं तो काम का होगा। कल्पना करके हम प्रसन्न होते हैं लेकिन सत्य कुछ और है।
हमें बाहरी पुस्तक के साथ आंतरिक पुस्तक को पढ़ना होगा जानना होगा, तभी हम सफल और असफल के परे जा सकते हैं। क्योंकि कुछ कारण होता है तभी हम कुछ कार्य करते हैं, बहुत ऋषि ने बहुत पुस्तक के माध्यम से व्याख्यान दिए है। लेकिन फिर भी हम अज्ञान में जी रहे हैं।
क्योंकि हमें उधार का ज्ञान में लिप्त होना है और दो अक्षर पढ़ के ज्ञान देना सुरु कर देते हैं। अपना एक ड्रेस कोड बना लेते हैं, और अपने आपको बड़ा आदमी बनाने में लग जाते हैं, हम सभी के साथ आंतरिक शोषण करते हैं सवाल भी नहीं पूछने देते कोई प्रश्न उठाया फिर आप उसे चुप कर देते हैं क्रोध आ जाता है, या जवाब देना जरूरी है तो कुछ से कुछ तर्क देने आग जाते हैं। पता कुछ नहीं लेकिन जवाब देना है क्योंकि उससे हमें खुशी मिलता है की लोग मेरा बात मान रहे हैं,
हम लोग के पास जागरूकता का अभाव है प्रेम का अभाव है ध्यान का अभाव है इसलिए हम वर्तमान में स्थिर नहीं हो पाते हैं। क्योंकि हमें आवश्यक लगता भी नहीं है। हम बेहोश में जीने में लगे रहते हैं आप बोलोगे आंख तो खुला है नहीं खुला है बस कामना वासना के लिए खुलता है, उसका कारण है यदि हम किसी भी चीज को पांच मिनट तक देखने में सक्षम हो फिर हम उसके बारे में जान सकते हैं लेकिन पांच क्या एक मिनट भी नहीं देख पाते बस बेहोश में जी रहे हैं। जागने में मन भी नहीं करता क्योंकि बेहोशी का भी अपना मजा है, अंधकार भी अपना अलग रुतबा है।
हमें जागरूकता लाना होगा तभी हम परिवर्तन रूपांतरण ला सकते हैं जीवन में। मैं यह नहीं कह रहा कि पुस्तक नहीं पढ़े , पढ़े आप जरूर पढ़े लेकिन आंतरिक पुस्तक भी पढ़ना होगा, मानना नहीं है जानना भी है, बाहरी हो या आंतरिक दोनों को जानना होगा, मानना नहीं है बस जानना है फिर आप भी शांति में रह सकते हैं। लेकिन हम अंदर जाते हैं फिर हम सभी अंग पदार्थ ऊर्जा चेतना तक जा सकते हैं।
हमें बाहर और अंदर दोनों को स्वीकार करना होगा, लेकिन जो पहले दिखे उसे जानने में लग जाइए फिर आप जो नहीं दिख रहा है वो दिखने लगेगा सूक्ष्म हो या स्थूल शरीर दोनों को जानना होगा तभी हम न्याय अन्याय दोनों में जागृत हो सकते है।
हमें अंदर जाना होगा उसके बाद हम चकित होंगे बदलाव देखकर, और सभी से प्रेम कर सकते हैं। सभी आपको टिप्पणियां भी करेंगे क्योंकि आप कुछ जान लेते हैं और सामने वाला को क्रोध या लोभ होगा। उस सबसे कोई घबराना नहीं है बस देखते रहना है और प्रेम देना है करुणा भी,
जब आप जागरूकता लाते हैं फिर आपको सभी प्रश्न का जवाब मिल जाता है और आप आनंदित हो जाते हैं।
धन्यवाद।
रविकेश झा।❤️🙏🏻