*उद्वेलित दिखता प्रतिशोध*
उद्वेलित दिखता ,प्रतिशोध ।
मैं, तुम, वह, दुर्नीति घमंड ।
होते निर्मित नित सांचे प्रचंड।
लोग अलग हैं जिनके बल पर
नहीं चाहता कोई रहना गल कर।
निकल नयन दिखलाते अतिक्रोध।।
उद्वेलित दिखता——————–।1।
यह घातक है बीज अनश्वर ।
हुआ घमण्डित तू जिनको धर।
कुछ नहीं दीखता आर पार ।
मुशिक्ल जिनसे जन उद्धार ।
विसवास है ,की उभरेगा प्रबोध।
उद्वेलित—————————–।२।
वह गुर्राता नत उसे देख।
बनती दरार अति अमिट रेख।
करते भव्य भव्य विष संचित।
करते नुक्कड़ नाटक मंचित ।
होता जमकर रोज विरोध ।।
उद्वेलित—————————-।३।
अच्छा होता ‘मैं ‘ ‘तू’ मर जाता ।
यह नाशक बीज नहीं बो पाता ।
मनुज मनुज सानन्दित रहता ।
लहू व्यर्थ न सरि बन बहता ।
नहीं रचे जाते नित अवरोध ।।
उद्वेलित—————————-।४।
प्रफुल्लेपन की सुगंध सुहाती ।
अलगावी दरिया न हहराती।
सोंधेपन में मीठा घुलता ।
न ऊंच नीच का मण्डप तुलता।
खूब पनपता घर घर प्रमोद ।।
उद्वेलित—————————-।५।