“उद्यम की क्रान्ति से तृप्त होती भूख”
कोई,
आवाज़ नहीं है,
मूक पक्षी,
और भूखा,
देख रहा है,
क्या वास्तव में,
वह नहीं बोलता है,
वह बोलता है,
एकान्त में,
वह देखता है,
वह सुनता है,
अपने मन जैसा,
शुद्ध स्वंतन्त्र,
कोई छल, कपट,
न हो अग़र,
वह बोलेगा,
उसकी भूख,
विचारों से तृप्त,
होती है,
शान्ति से तृप्त,
होती है,
उद्यम की क्रान्ति से,
तृप्त होती है,
वह स्वंतन्त्र है,
वह भ्रमित नहीं,
वह मूक प्रसन्न है,
उसे प्रसन्न शान्ति,
की आशा है,
वह विद्या की कुटिया,
का स्वामी है
वही है हमारे,
अन्दर बैठा यात्री,
स्थिर,एक और वही,
एक पक्षी।।
©अभिषेक पाराशर