उदास शाम
एक उदास शाम
मेरी तरह
रोशनी से विदा लेती
दो चार कदम बढ़कर
मुड़कर देखती
आस की नजरों से
अनकही हूक दबाये
बोझिल सांसें संभालती
हांपती, रेंगती शाम की
धुंधलाती रात की बाहों
मे खोने से पहले की
कशमकश देखता हूँ
थके पेड़ों की बढ़ती
परछाइयों मे
बैचैनी से भरी
स्तब्धता टूटती है
कुछ पल के लिए
नीले आकाश से
लौटते परिंदो के
कलरव से
और फिर एक
गुमशुदा सन्नाटा
यादों के धुँधले अक्स
अंगड़ाइयाँ लेते हैं
ख्वाब ढूंढती नजरों में
संवरते , इठलाते
पास आकर ठिठके
फिर अनजानी आहट से
दूर कुलांचे भरकर
दृष्टि की परिधि से ओझल
एक ठंडी बयार
हल्की सी झुरझुरी
बिखरा दिवास्वप्न
कांच के टुकड़ों सा
हल्के हाथों से सहेजता
फिर उसी पल को पाने
की नाकाम कोशिश
अधखुले होटों की मुस्कुराहट
खुद की हंसी उड़ाती हुई
एक उदास शाम
मेरी तरह