उदास दिल
तेरी याद में फिर उदास
हुए हैं हम मजारों की तरह !
कब तक बैठेगे हम चुप
यूँ ही दीवारों की तरह !!
ना जाने कब उनका
कोई पैगाम आ जाये !
बैठे रहते हैं अपने दर पर
यूँ ही आवारों की तरह !!
कल रात चान्दनी ने
झिझकते हुये मुझसे पूछा !
क्यों जलते बुझते
रहते हो सितारों की तरह !!
कोई रखता है यकीन
मुहब्बत पर भी इस जमाने में !
पूछती रही रात कल यूँ
सबसे मुझे बन्जारो की तरह ।।
कौन है अपना तेरे सिवा
जो सम्भाले “सलिल” को यहाँ !
टूट रहा हूँ तेरी यादों की
लहरों से किनारों की तरह !!