उदासीनता
उदासीनता
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देह पटल पर मेरे
कुछ चिंता की लकीरें
आती है उभर
शायद वही निमंत्रण देती है
मेरी उदासीनता को
शाम को तुम्हारा आना
आते ही मुझ पे झल्लाना
बात -बात में कटाक्ष करना
शायद यहीं वजह है
मेरी उदासीनता की
जीवन बगियाँ में उत्सव होता
था सुंदर फूलों का
खिला करते मुँह पर मेरे
मुस्कानों का देते पानी
हरी -भरी थी मैं
पतझड़ सी लगती है
झिल्लाहट तुम्हारी
आते ही दफ्तर से तुम्हारे
काम भी चला आता है
शायद यहीं उदासीनतां की
वजह है मेरी
डॉ मधु त्रिवेदी