उदासीनता
इतनी अकर्मण्यता और उदासीनता,
जीवन में आजकल क्यों हो रही है ?
हर घड़ी ,हर पल इतनी जायदा नीरस,
और जान पर बोझिल क्यों हो रही है ?
सारा जोश ,सारा उत्साह कहां गया ,
यह जिजीविषा क्यों कम हो रही है ?
मौत से पहले तो कौन मरना चाहेगा,
मगर वोह मौत की घड़ियां गिन रही है ।
तकदीर से हारी और विधि की मारी हुई ,
कोई अपने खुदा को पुकार रही है ।
उसकी आजकल और कोई चाह नहीं रही ,
बस एक मुक्ति की अभिलाषा हो रही है ।
शायद इसीलिए उसकी हर घड़ी ,
गहन उदासीनता में गुजर रही है ।