उत्सव
अभय होस्टल से दुर्गा पूजा की छुट्टियों में घर आया था।अगले दिन उसका जन्मदिन था।पापा ने अपने कुछ अंतरंग मित्रों को सपरिवार आमंत्रित किया और माँ ने अपनी सहेलियों को ।जन्मदिन पर अभय ने अपने दोस्तों को होटल में पार्टी दी और होटल से निकल गया।अपने घर से वह दस बजे ही निकला था और शाम के छः बज रहे थे ।सभी अतिथि करीब करीब आ चुके थे।सब अभय के आने का इंतजार कर रहे थे।माँ बार बार उसे घर आने के लिए उसे फोन कर रही थी ।”आ रहा हूँ मम्मी”, बार बार वह यही बोलता।पापा ने कहा,”जल्दी आ जाओ , अभय, सब लोग आ चुके हैं ।हमलोग तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं ।”
“मैं अपने जन्मोत्सव का उपहार लेकर ही वापस आऊंगा “, अभय बोला।”मैं तुम्हारा उपहार ले आया हूँ,”पापा ने बताया ।वे उसके लिए लैपटॉप खरीद लाये थे।”मुझे सबसे बेहतरीन उपहार चाहिए ।आपदोनों इजाजत देंगे तो लेकर आउंगा,अन्यथा नहीं आउंगा,”अभय बोला।”क्या चाहिए तुम्हें, बताओ”?, पापा ने कहा ।”हमें आपसे उपहार नहीं, उपहार लाने और घर में रखने की इजाजत चाहिए “।दोनों सोचने लगे,ये अपने पसंद की किसी लड़की को साथ लाने की बात तो नहीं कर रहा है ।
देर हो रही थी।और इंतजार नहीं किया जा सकता था ।हार कर उन्होंने इजाजत देते हुए जल्दी आने को कहा ।
आधे घंटे में अभय आया।साथ में दादा दादी को राम जानकी वृद्धाश्रम से लाया था।घर में अतिथियों की भीड़ थी।दादा दादी के पैर बढ़ नहीं रहे थे।बीच में अभय दोनों का हाथ पकड़ कर घर से बाहर खड़ा था।उसके माता पिता स्तब्ध थे।पर कोई चारा नहीं था ।उन्हें बेटे की खुशी चाहिए थी।दोनों सीढ़ी से नीचे उतरे, माता पिता के चरण छुए और अभय ने अपने माता-पिता का।सब अंदर आये ।अभय के खुशी की सीमा नहीं थी।उसे अपना उपहार मिल गया था और अपना जन्मोत्सव सार्थक प्रतीत हो रहा था ।