उत्सव
शहर के एक छोर पर एक मिनी भारत बसता है। नाम भी है ‘भारत सिटी’। बहु मंजिलों वाले टावर के साथ घूमने के लिए पार्क, चारों कोनों में भाईचारे के प्रतीक मंदिर, मस्जिद, चर्च एवं गुरद्वारा, हर प्रकार की जरूरत के सामान की दुकाने लिए कमर्शियल काम्प्लेक्स, मनोरंजन हेतु मल्टी स्क्रीन वाला थिएटर और हर उत्सव से संबंधित कार्यक्रमों के लिए ऑडिटोरियम सब कुछ था इस मिनी भारत में।
गुप्ता जी हाथ में झोले लटकाए सोसाइटी में प्रविष्ट हुए। शायद झोलों में काफी सामान था।
एक फ्लैट के समक्ष झोले दीवार के साथ टिका डोर बेल बजाई। दरवाजा खोलते हुए महिला गुप्ता जी का अभिवादन करते हुए बोली नमस्कार भाई जान। गुप्ता जी ने झोले महिला को पकड़ाते हुए कहा सलमा भाभी इन झोलों को संभाल कर रखिये। नवरात्रि आने वाली है ना तो उसी का सामान है और हां माता की मूर्ति भी है जरा संभाल कर। और अब्दुल भाई कहाँ हैं? सलमा बोली वो तो स्टेज का सामान बुक कराने गए हैं।
गुप्ता जी सलमा को सामान सम्भलवा कर लिफ्ट की और चल दिये। सोसाइटी में रहने वाला हर व्यक्ति नवरात्रि के स्वागत के लिए उत्साहित था।
नवरात्रि के साथ साथ रामलीला का मंचन भी तो होना था। इस सोसाइटी और सोसाइटी में रहने वाले सभी परिवारों में एक अलग तरह का उत्साह था। सभी मिल जुल कर मां जगदम्बे की स्थापना एवं रामलीला के मंचन हेतु स्टेज बनाने का कार्य करने का संकल्प लेकर रात्रि विश्राम के लिए घरों में कैद हो गए। एक नई सुबह की इंतज़ार में।
अरे ये क्या कर हैं आप लोग? मां की स्थापना तो स्टेज के बीच में होगी। अब्दुल भाई जिनके जिम्मे स्टेज का काम था बोले गुप्ता जी रामलीला का मंचन भी तो होगा यहां। रामलीला का मंचन तो ऑडिटोरियम में होगा और वहां की सारी व्यवस्था तो जोसफ भाई करवा रहे हैं।
आखिर वो दिन भी आ गया जब पंडाल में मां जगदम्बे के मूर्ति स्थापित हुई थी। इतने में सिंह साहब गले में ढोल डाल बजाते हुए मां की सवारी के साथ पंडाल की और आते दिखाई दिए। अभी कुछ दिन पहले ही गणेश विसर्जन पर भी सिंह साहब झूम झूम कर ढोल बज रहे थे। धीरे धीरे मां के सवारी स्टेज तक पहुँच गई अजर बड़े ही सम्मान के साथ मां को विराजमान कर दिया गया।
पंडाल में मां का भंडारा पूजा आरती जागरण का कार्यक्रम और ऑडिटोरिम में रामलीला का भव्य आयोजन एक अलग तरह का भक्तिमय वातावरण था सोसाइटी में। और मजे की बात तो यह थी कि रामलीला में सभी पात्र सोसाइटी के ही थे। धीरे धीरे नवमी भी आ गयी। जुली, सायरा, मंजीत कौर हो या राधा लक्ष्मी सभी सुबह सुबह नहा धो कर कंजक के रूप में सभी घरों की रौनक बनी हुई थी।
अगले दिन बुराई पर अच्छाई का त्योहार विजय दशमी भी बड़ी धूम धाम से मनाया गया। बुराई के प्रतीक रावण, कुम्भकरण, मेघनाद के पुतलों को एक बड़े और खाली मैदान में लगाया गया था। चारों और मेले जैसा उत्साह था।
यही तो थी इस सोसाइटी की खासियत। ईद हो या ईस्टर गुड फ्राइडे हो या प्रकाश उत्सव या फिर होली, दिवाली, रक्षाबंधन सभी उत्सव बड़ी उत्साह जे साथ मनाए जाते हैं यहां पर। 26 जनवरी, 15 अगस्त, 2 अक्टूबर, नेताजी जी का जन्मदिन या बाल दिवस जैसे राष्ट्रीय उत्सव भी यहां इसी उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। पूरा वर्ष भर सोसाइटी में कोई ना कोई उत्सव चलता ही रहता है। ऐसा है मेरा मिनी भारत जहां हर धर्म, संस्कृति, सभ्यता को मानने वाला एक दुसरे के सुख दुख का साथी बसता है।
वीर कुमार जैन