” उत्सव रोज़ मनाएं ” !!
प्रजातन्त्र जन जन का शासन ,
जन जन को है भाये !
वोटों का अधिकार मिला बस ,
सत्ता है दुलराये !!
पाँच बरस में अवसर आये ,
नेताओं को चुन लो !
सब्ज़ बाग वे हमें दिखाते ,
सपने अपने बुन लो !
शाही ठाट बाट हैं उनके ,
जन जन धक्के खाये !!
कहाँ फरिश्ते प्रजातन्त्र में ,
रहे रेवड़ी बाँटे !
अर्थव्यवस्था चौपट होती ,
दीमक जैसे चाटें !
सात पीढ़ियाँ करे सुरक्षित ,
वैतरणी तर जायें !!
है चुनाव अधिकार हमारा ,
थोड़ा सा कुछ गुन लें !
जाति , धर्म में बंटे नहीं हम ,
सही राह को चुन लें !
मिले प्रलोभन चाहे जितने ,
कभी न धोखा खायें !!
जननायक का चयन सही हो ,
बेहतर मिले नतीजे !
वहीं विपक्ष भी बैठा बैठा ,
मले हाथ औ खीजे !
अवसर को गर सही दिशा दें ,
उत्सव रोज मनाएं !!
सरकारें जनहित को देखें ,
लाभ जुड़े हों सबके !
उन्नत हो बस देश हमारा ,
उन्नत हों सब तबके !
मुस्कानें हो हर चेहरे पर ,
ठहरे औ गहराये !!
है विधायिका सब पर भारी ,
इसमें थोड़ा भय है !
न्यायपालिका लगे विवश है ,
राजनीति की जय है !
एक देश कानून एक हो ,
न्याय एक सा पायें !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )