उत्सव अपना-अपना
उस दिन नरेश बाबू के घर मे उत्सव का जबर्दस्त कार्यक्रम था। सभी मित्र रिश्तेदार घर आये हुए थे। नरेश बाबू के बेटे राज का जन्मोत्सव जो था। घर के सभी लोग अत्यंत प्रसन्न होकर अतिथि गणों के स्वागत सत्कार में व्यस्त थे। शाम के ठीक 7 बजे जन्मोत्सव का केक काटा जाना था। केक पार्टी स्थल को शानदार तरीके से सजाया गया था। डीजे बाजे चल रहे थे। भोजन के लिये शानदार बफर पार्टी की व्यवस्था की गई थी।
उचित समय पर जन्मोत्सव का केक काटा गया। केक काट कर सबसे पहले बेटे राज ने अपने माता-पिता को केक खिलाया और उसने माता-पिता का आशीर्वाद लिया। फिर सभी आगंतुकों एवं परिवार के अन्य सदस्यों ने केक खाया। कुछ ने तो केक एक-दूसरे के गालों में लगाया ज्यादा, खाया कम। प्रीतिभोज एवं डीजे डांस पार्टी रखी गई थी। सभी लोग सूट-बूट, टाई-फाई व विविध फैशनेबल ड्रेस में थे।
कुछ लोग उत्सव मनाते भोजन कर रहे थे। कुछ लोग डीजे के साथ डिस्को डाँस मे व्यस्त-मस्त-लस्त और कुछ अस्त-व्यस्त-पस्त । खाने वाले कुछ लोग तो प्लेट में खाना ज्यादा लेते पर खाते कम। जूठन बचा दे रहे थे। अधिकांश मित्र ड्रिंक किये हुए थे, डीजे साउंड संग डिस्को डांस कर रहे। अश्लील एवं आधुनिक ट्रेंड गाने चल रहे। इधर भोजन भी चल रहा था।
मुहल्ले की पास की बस्ती के कुछ गरीब बच्चे जो भूखे थे। भोजन की आश में राकेश बाबू के द्वार पर आये खड़े थे किन्तु उन्हे अंदर भोजन पार्टी में जाने की अनुमति नहीं थी। हाँ कुछ जानवर कुत्ते इत्यादि इधर-उधर से टैण्ट के पर्दे के नीचे से अंदर आकर मेहमानों द्वारा छोडे गए जूठन से अपना पेट भर रहे थे। कभी-कभी तो कुछ जानवर प्लेटफार्म में रखे भोजन में भी मुँह मारने की कोशिश कर लेते। कभी कोई डन्डा लेकर उन जानवरों को खदेड़ भी देता।
रात्रि के लगभग 12 बज गये थे। उत्सव पार्टी अभी चल रही थी। लगभग सभी लोग भोजन कर चुके थे। बहुत सारा खाना अभी भी बचा हुआ था। कुछ तो बर्बाद हो गया था। किसी ने उन भूखे बच्चों की ओर ध्यान ही नहीं दिया था। जो पड़ोस के मुहल्ले के गरीब परिवारों से भोजन की आश मे आये थे।
मैं जन्मोत्सव पार्टी में भाग लेकर भोजन इत्यादि से तृप्त होकर घर के लिये निकलने ही वाला था। तभी टैण्ट के बाहर जाकर एक कोने की ओर देखा तो वहाँ फेके गये जूठे भोजन को प्राप्त कर कुछ बच्चे जैसे अपना उत्सव मना रहे थे। वो वही गरीब भूखे बच्चे थे। इधर टैण्ट के अंदर जाकर देखा तो बफर के प्लेटफार्म पर सजाया हुआ भोजन अभी भी रखा हुआ था। डीजे पार्टी अभी भी चल रही थी। अधिकांश आगन्तुक तो तृप्त होकर वापस अपने-अपने घर को प्रस्थान कर चुके थे। शेष सब लोग अभी भी विविध चर्चाओं, गप-शप या डीजे संग धूम-धड़ाका कर अपना-अपना उत्सव मना रहे थे।
इधर मैं कुछ न कह पा रहा था और न कर पा रहा था। उत्सव देख असहाय होकर गहरी सोच में डूब गया था। और हाँ फिर मन ही मन उत्सव प्रतियोगिता के लिये उत्सव की कहानी गढ़ता हुआ मैं भी अपना उत्सव मनाने में लग गया था।
-कौशलेन्द्र सिंह लोधी ‘कौशल’