उडान
एक संस्मरण हवाई यात्रा पर!
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मैं और मेरी पत्नी,ने भरी उड़ान,
इंडिगो एयरलाइंस का था विमान,
मैंने तो इससे पहले भी,
एक बार,यह यात्रा कर ली थी,
किन्तु पत्नी तो पहली बार,
यह यात्रा कर रही थी,
मैं और मेरी पत्नी,
जा रहे थे,
अपने पुत्र के पास,
जहां वह सेवा में है,
एक निजी प्रतिष्ठान में,
और रहती है हमारी बहु भी साथ में,
उन्होंने ही हमें देव दर्शनों के लिए बुलाया था,
और अपने पास आने का,
टिकट इंडिगो एयरलाइंस से कराया था,
यह बात छब्बीस फरवरी की है,
जब हम दोनों ने,
यानी कि पति-पत्नी ने,
एक साथ उड़ान भरी थी,
और हमें देहरादून से बैंगलोर ले चली थी।
हवाई अड्डे पर,
बहु,-बेटे हमें लिवाने को आए थे,
उनसे मिलने के बाद,
हम उनके साथ, उनके आवास पर जा रहे थे,
दो-चार दिन तक,
हम घर पर ही रहे,
और तीन मार्च को हम,
श्री तिरुपति बालाजी के दर्शन को चले थे,
वहां पहुंच कर,
हमने जाना,
मां गंगा की एक धारा वहां बहती है,
वहां उसे लोग पापनाशनी कहते हैं,
उसी से थोड़ी दूरी पर,
आकाश गंगा का रुप देखा,
चट्टानों के मध्य में,
उसको बहते देखा,
उन्हीं के निकट में,
संकट मोचक श्री हनुमानजी विराजे हैं,
लोग यहां पर,
भक्ति भाव से आते-जाते हैं।
राह में सबसे पहले,
हमने सिद्धी विनायक जी के दर्शन पाए थे,
और फिर आगे को बढ़ आए थे,
तिरुपति बालाजी जी के दर्शन पाने को,
और माता पद्मावती जी को भेंट चढ़ाने को,
सौभाग्य वस माता गंगा,
और संकट मोचक,श्री हनुमानजी के दर्शन ,
हमें एक चालक ने कराए , जिसके साथ हम टैक्सी पर आए,
उसको वहां का पुरा ज्ञान था,
लेकिन पहले वह नहीं बता रहा था,
किन्तु राह में हमने,
उसे साथ में नाश्ता कराया था,
और उसकी पसंद-नापसंद,
के अनुसार नाश्ता मंगवाया था,
तब उसने हमें समझाया,
तिरुपति जी के दर्शन से पहले,
यहां पर भी दर्शनार्थ लोग जाते हैं,
हमारे पास समय काफी है,
तिरुपति जी के दर्शन को,
मैं ले चलता हूं, तुम्हें,
इन पूज्यनीय स्थलों को,
और इस प्रकार हमने,इनके दर्शन पाए,
जिन्हें देखने हम नहीं थे आए।
तीन बजे सांयकाल में ,
श्री तिरुपति बालाजी मंदिर,
खुलता है,
उससे पूर्व में वहां पर भंडारा चलता है,
हम भी भंडारे में शामिल हुए,
और भोग प्रसाद में,
दक्षिण भारतीय सभ्यता-संस्कृति के दर्शन किए,
तत् पश्चात अब पंक्ति में लगना पड़ा,
जहां श्रद्धालुओं का तांता था लगा,
समय आने पर,
प्रवेश करने को ताला खुला,
और फिर लग गया रेलम-पेला,
ढाई घंटे की मशक्कत के बाद,
हमारा भी नंबर आया,
इस तरह हमने ,
श्री हरि विष्णु जी के रूप में,
तिरुपति बालाजी का दर्शन पाया।
अब दिन ढल चुका था,
और हमें माता पद्मावती जी के दर्शन को जाना था,
लगभग एक घंटे के सफर के बाद,
देवी मां के प्रागंण में पंहुच गये,
यहां पर भी हम लाइन में लग गए,
टिकट खिड़की पर काफी भीड़ जमा थी,
चढ़ावे के लिए,
यहां पर फुलों का छोटा गुलदस्ता चढ़ता है,
और प्रसाद में लड्डू खाने को मिलता है,
इस प्रकार हमने एक यात्रा पूरी कर ली थी।
अब आगे के लिए,
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग में जाने की तैयारी थी,
किन्तु इसी मध्य में,
कोरोना महामारी का प्रकोप फैल गया,
और फिर सरकार ने लौकडाऊन घोषित कर दिया,
हमारी यात्रा तो अधूरी रह गई,
साथ ही घर वापसी की तिथि भी बढ गई,
उन्नतीस मार्च को हमारी वापसी की टिकटें रद्द हो गई,
और तब से लेकर हम वहीं फंसे पड़े थे,
दो महीने के उपरांत,
आवागमन के साधनों को खोला जाने लगा,
हमने वापसी के लिए टिकट कराई,
लेकिन अचानक फिर से ,
टिकट रद्द हो गई,
सीधी यात्रा के बजाय,
अब दिल्ली में दूसरा विमान पकड़ना था,
जो हमारे अनुकूल नहीं हो रहा था,
फिर कुछ दिन और इंतजार किया,
तब तक एक प्रतिबंध यह लग गया,
एक सप्ताह होटल में क्वारनटीन रहना पड़ेगा,
और ठीक रहे तो,दो सप्ताह घर पर ही रहना पड़ेगा,
अब हम होटल में क्वारनटीन रह कर जोखिम नहीं चाहते थे,
इस कारण फिर टिकट को रद्द करा रहे थे।
फिर सरकार ने कुछ परिवर्तन कर डाले,
पच्चत्तर शहरों को छोड़ कर,
होम कोरनटाईन में तब्दील कर डाले,
अब हमने अवसर को जाने न दिया,
और जैसे ही सीधी उड़ान का मौका मिला,
हमने टिकटें करवाई,
और वापसी की राह में,
तीन रातें बिताई।
साथ जून का वह दिन आया,
जब हमने अपने राज्य को कदम बढ़ाया,
हवाई अड्डे पर आवश्यक,
कागजी खानापूर्ति को पूरा किया,
और फिर अपने घर का रुख किया,
घर पंहुच कर राहत का अनुभव किया,
ऐसा भी नहीं था कि हम,
अपने बच्चों के साथ नहीं रह पाते,
लेकिन अपने घर पर रहने का,
अलग ही सुख हैं पाते,
और इसमें जितनों का भी सहयोग मिला है,
जैसे बहु-बेटे ने हमारे कहें अनुसार ही,
बार बार टिकटें करने में,
और रद्द करने में जो कुछ कष्ट सहा है,
मानसिक और आर्थिक,सब कुछ किया है,
राज्य सरकार ने भी,
नियमों में संशोधन किया है,
जिसका लाभ हमने लिया है,
हवाई अड्डे पर,
टिकट के प्रिंट निकालना,
हमारे लिए कठिन था, उसमें भी,
कुछ नौजवानों ने सहयोग किया है,
और भी अन्य अड़चनें आई थी,
जिसमें, में भी इन्ही नौजवानों ने,
हमारी सहायता में,हाथ बढ़ाई थी,
वह भी तब जब,
संक्रमण का खतरा सामने खड़ा हो,
और उनके पास अपना भी काम पड़ा हो,
उन्होंने मददगार बन कर दिखाया,
और हमें लिफ्ट से गंतव्य तक पहुंचाया
और अंत में इंडिगो एयरलाइंस के,
सभी कर्मचारियों का भी शुक्रिया,
जिन्होंने ने खराब मौसम में भी,
विमान को उड़ाया,
और हमें अपने-अपने घरों के निकट पहुंचाया,
इस प्रकार से हम दंपति ने,
एक और उड़ान भरी।
उड़ान का भी एक कौतूहल रहता है,
जब कभी वह हिचकौले लेता है,
सांसें तेज हो जाती हैं,
दिल बैठने लगता है,
फिर वह अपनी रफ्तार ,
पुनः पकड़ लेता है,
सुंदर सा तब आकाश दिखता है,
धरती का तो कहीं पता ही नहीं चलता है,
हम बादलों से भी ऊपर होते हैं,
और बादल वहां पर निकट होकर,
कभी ऊपर-कभी नीचे दिखते हैं,
कभी कभी तो साथ साथ में चलते हैं,
बड़ा ही मनोरम यह नजारा होता है,
जब इंसान बिना पंखों के,
आसमान पर होता है,
धरती और आकाश के मध्य में,
बादलों के साथ,
आगे बढ़ते हुए,
जब कभी ऐसा लगता है,
विमान एक ही स्थान पर खड़ा है,
और बादल आ जा रहे हैं,
और तभी एक धरधराहट का अहसास होता है,
फिर विमान किसी पंछी की तरह,
झूमते हुए निकलता है,
और यह आनन्द का अवसर होता है,
जीवन में हमने भी यह सुख पा लिया है,
जब स्वंय को धरती और आकाश,
दोनों के बीच में अपने को उड़ते हुए देखा लिया।।