उड़ी पतंग
देखो-देखो दूर गगन में,
बिन पंखों के उड़ी है पतंग,
एक डोर के बंधन के सहारे,
गगन को छूने को आतुर होता,
रंग-बिरंगी उड़ती पतंग,
सैर करती दूर गगन में ,
कागज की बनी पतंग ,
लाल हरा नीला काला भिन्न-भिन्न रंगों के ,
प्यारी लगती बच्चों और युवकों को ,
लहराती इधर-उधर ,
पकड़ने को दौड़ते पीछे-पीछे ,
डोर कट जाती तो उड़ जाती दूर गगन ,
बिन पंखों की बनी पतंग ,
देखो-देखो उड़ी पतंग ।
✍? बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।