उड़ा ले चल हवा हमें।
उड़ा ले चल हवा हमें, पहुंचा दे मेरे प्रेमिका के पास।
इतनी बेचैनी करके आस न लगाऊं, रहूं उनके पास।
दुर्लभ से ही क्यों न पहुंचे, पेड़ों से टकराकर।
पर! इतना सा कर दे काम, मै खुश हो जाऊं उसे देख कर।
तुम तेज गति से चलना, पैरो में घुंघरू बांध कर।
क्योंकि! उसे आवाज सुनाई दे, मेरे प्रेमी आ रहे हैं।
तुम इतना देर क्यों कर रही है, वृक्षों से लहराकर।
अब रहा नहीं जाता, गमों के बहते आंसू पोंछ रहे हैं।
तू पछुआ चल या पुरवाई पर जल्दी पहुंचा दे हमें।
विश्वास न टूटे तुम पर, उड़ा ले चल अपने झोंके में।
क्यों! रुक गई मंद- मंद मुस्कुराकर पत्तियों से भेंट कर के।
पत्र नहीं आया है उसका, मै तड़प रहा हूं, बैठ कर इस मौके में।
कुछ दिन बात नहीं हो पाई उससे मिलकर।
दिल जलता है मेरा, क्यों नहीं हो पाई उससे बाते।
एक बार तो विनती सुन ले मेरी, पहुंचा दे पंख लगाकर।
मुझे मोह लगती है, उससे नहीं मिलने पर, अब कैसे कटेगी राते।
जो खींच लिए हमें अपनी मुस्कान दिखाकर अपनी ओर।
उसके बिना कैसे रह पाऊं मैं, दूरी बना कर।
कुछ तो कर अपने बाहों में लेकर हमें, पहुंचा दे वहां तक।
मै एहसान रहूंगा तेरा, जब ये कार्य करोगी हंस कर।
लेखक- मनोज कुमार (गोंडा उत्तर प्रदेश)