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14 Jan 2021 · 1 min read

उड़ान

उड़ान

उड़ान भरूं पतंग सी मैं मतवाली,चंचल
खो जाऊँ विस्तृत नभ के सिंदूरी अंचल

मेघों का आभास,सतरंगी धनक निहारूँ
बूंदों के दर्पण में निज को नित सवारूँ

मृदु-स्वप्न डोर लिए उड़ जाऊँ क्षितिज पार
अधरों को छू मादक कर दे मंद मंद बयार

हीरक से तारों की नगरी में कर लूँ बसेरा
उड़ पहुँचूँ उस छोर जहाँ न कोई तेरा मेरा

रेखा ड्रोलिया
कोलकाता

Language: Hindi
1 Like · 3 Comments · 357 Views
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