****उड़ान***( एक काव्यात्मक कथा)
मैं उस देश की बेटी जिसमें जन्मी सीता और सती |
मुझको मत कमजोर समझ तू ,
मैं ही धरती और नदी |
गंगा जमुना के जैसी हूँ ,
शीतल ठंडी और पवित्र |
ना कर मेला मुझको मानव |
मैं धरती की एक बेटी |
माँ से पाया जीवन मैने ,
माँ जैसी ममता रखती |
जीवन मेरा सफल हुआ है ,
पाई मैंने मानव योनि |
कीट पतंगे ना बन करके ,
आई जग में बेटी बन करके |
ना कर मेला जीवन मेरा ,
रहने दे मुझको सूची |
मैं इस जग को जीवन देती ,
देती बेटा और बेटी |
बेटा तो एक वंश बढ़ाता ,
बेटियाँ यश बढ़ाती है |
काम ऐसे वह करती हैं ,
बेटों से भी आगे बढ़ जाती है |
धरती की तो सैर सभी करते हैं ,
आसमां को छू कर आती है |
कल्पना की उड़ान वह भर्ती ,
अंतरिक्ष में पहुँच कल्पना जाती है |
हाड माँस को त्याग के भी ,
जीवन में नाम कर जाती है |
याद रखे हर नर बच्चा ,
ऐसे काम वह कर जाती हैं |
ऐ मानव जग जा तू अब ,
शक्ति को इसकी कम ना जान |
कंधे से कंधा , पग से पग ,
कदम बढ़ाती जाती है |
ऊँचाई को छू लेती है ,
ऊँची उड़ान भरके आती हैं|
रोक ना अब तू पाएगा उसको,
पर्दो में ना रख पाएगा |
ठान जो ली आगे बढ़ने की ,
पीछे न कर तू पायेगा |
समझ ना अब तू इसको कम ,
बेड़ी से बाँध ना पाएगा |
निकल पड़ी है तुझ से आगे ,
रोक ना अब तू पाएगा |
समझ इसी में है तेरी अब ,
साथ इसको तू लेकर चल |
कदम मिला संग इसके अब तू ,
कंधे से कंधा बाँध के चल |
संगी बन साथी बन इसका ,
ताकत को इसकी कम ना कर |
इस बेटी,नारी को अब तू ,
अबला समझने की भूल ना करें |
करी जो भूल तूने अब ऐसी गर्त में तू गिर जाएगा |
देखेगा जब रुद्ररूप इसका समझ ना तू कुछ पाएगा |
अंत हो जाएगा तेरा भी सृष्टि पर प्रलय जब आएगा |
***हाहाकार ही हाहाकार अपने नज़दीक तू पाएगा |***
******न मानी जो नीरू की तूने ,
नीरू(रोशनी/प्रकाश)****कभी न देख पाएगा |