उड़ने दे मुझे
सूख चुके हैं
नयन-नीरद
फिर भी ये
बरसने को बेताब
पर विडंबना यही
कि सूख चुके हैं
नयन-तलाव
फिर भी ये
बिखरने को बेताब
पर तड़पना यही
कि सूख चुके हैं
भाव-सरोवर
फिर भी ये
बहने को बेताब
पर तरसना यही
मुरझा चुके हैं
नयन-उत्पल
फिर भी ये
महकने को बेताब
पर बिलखना यही
सिमट चुके हैं
समय के पंख
फिर भी ये
उड़ने को बेताब
पर सुलगना यही
निकल चुके हैं
सावन के बदरा
फिर भी ये
गरजने को बेताब
पर कलपना यही
गुजर चुका है
पथिक-बटोही
फिर भी ये
मिलने को बेताब
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झँझा ले जा चुके हैं
मेरे हिस्से की
मिट्टी को
अब यहाँ
मेरा ठहरना
मुनासिब न होगा
मेरे बेतरतीब किस्से
अब जाहिर न होंगे
ब्लैक होल मुझको
पहचान चुका है
अब कशिश देह की
जगजाहिर न होगी
मधुपों ने
रक्त-पुहुपों का
रस जो
पी लिया है
अब यादें भी
मेहरबाँ मुझ पर न होंगी
मैंने उनके हिस्से का
वक्त जो
ज्यादा ले लिया है
उडा़न बस उडा़न
निश्चित होगी
मेरी मंजिलों का
हासिल भी
अब फ़कत
मिल चुका है
चल हट अब
वक्त के पहरुए
इस पखेरुवा को
उड़ने दे
बस. .
उड़ने दे. . . . . .
#सोनू_हंस