उठ सखि उठ
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उठ सखि उठ रवि आया।
उठ गए पंक्षी नीड़ छोडकर तू भी अँखिया खोल।
अंबर ने अंगड़ाई लेकर, कर लिया आंचल गोल।
रात सो गई क्षितिज अंक में,किरण की चादर तान।
उषा,सुन्दरि नख-शिख साज-धज गा रही देखो गान।
उठ सखि उठ रवि आया।
बिखरी बिंदीया साजन के घर, सब बोलेंगे बोल।
बिखरी तेरी चोली,चुनरिया,योगी न जाए डॉल।
उठ सखि उठ रवि आया।
—————–18/9/21—————————