उठ रहा मन में समन्दर क्यूँ छल रहा सारा जहाँ,
उठ रहा मन में समन्दर क्यूँ छल रहा सारा जहाँ,
हो छल रहित कोई यहाँ अब ऐसी मानवता कहाँ?
अर्चना मुकेश मेहता
उठ रहा मन में समन्दर क्यूँ छल रहा सारा जहाँ,
हो छल रहित कोई यहाँ अब ऐसी मानवता कहाँ?
अर्चना मुकेश मेहता