*उठो,उठाओ आगे को बढ़ाओ*
उठो, उठाओ आगे को बढ़ाओ
मजदूर को करें हालात मजबूर।
मेहनतकश जीवन रखें उसे महफूज।
इमारत और महलों की नींव रखते
नदी नालों पर बांध बनाते।
पर्वतों पर जाकर,
चट्टान हटा मार्ग बनाते।
कठिन श्रम करके,
मंजिल को अंजाम दिलाते।
रूखी सूखी खाकर भी
परिवार संग मस्त रहते।
ज्यादा की नहीं लालच उनको,
दो वक्त की रोटी सुकून से खाते।
हमारा जीवन उन पर निर्भर,
उनका जीवन हम पर निर्भर,
उनकी जरूरत का रखें ख्याल
स्नेह, प्रेम और आत्मसम्मान
छीनने की ना करना मजाल।
चेहरे पर निराशा, आंखों में आंसू,
ना उनके कभी आने पाए।
हक का उनका उनसे
ना कोई छीन पाए।
उठो,उठाओ आगे को बढ़ाओ।
मेहनतकश जीवन को,
सम्मान दिलाओ।
मजदूर की मजबूरी का
ना करो उपहास।
हमारा कर्तव्य और प्रयास
बनें उनका उपहार।
रचनाकार
कृष्णा मानसी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)