उठू प्रिया
दुलरी तो छोड़ि गेलेह
आतुर आंगुर स्पर्श ला
ओ रोम रोम के वेदना सँ
कानि, कानि
उठू,प्रिया,फेरो हँसि दिअ,उठू
वंसत बयार देतऽ किछ सनेह
गुड्डी पताका अकास उङल छै
भरल पेटी मिठका सनेस देब
बौआ के मतारी हे सुनर परी
अगाध स्नेह ला
बड्ड व्याकुल छी
चारू ओर करीया मेघ घीरल
किछु नै फुराएत
उठ बैसु
उठू,प्रिया,फेरो हँसि दिअ,उठू
लहु आब पानि बनल
वेसुंध पड़ल छि
गुंज उठल रोदन
सुनू सुनू हे हमार लाल परी
केओ छथि नै अपन
वादा जिनगी भर के
सब तोड़ि बिसरि गेलेह
आब आगिसँ जराएब कोनो
कखन हरब दुख मोर प्रिया
अखनो उठू
उठू,प्रिया,फेरो हँसि दिअ,उठू
मौलिक एवं स्वरचित
@श्रीहर्ष आचार्य