उजालों के साए
उजाले के साए
मुश्किलों में दौर में छाया हर तरफ़ अंधेरा है।
उम्मीद बनकर रोशनी फिर हमें आवाज देती है।
गिरकर ही आया संभालना फितरत रही इंसान की।
संभलने के गुजारिश हमें उजालों का आगाज़ देती है
पाया है इसी जिंदगी से तो खोना भी पड़ा है।
खोने के नाम से धड़कन डर को साज देती है।
मिलने की खुशी साझा है गम बांटना सीख लो।
अंधेरे की फितरतें हमे अनुभव का साज देती है
क्या अंधेरा क्या सबेरा पड़ेगा दोनों से वास्ता।
संभलने की ताकीद एक नया मिजाज देती है।
आज है गर मुश्किलें तो हौसलों से आगे बढ़ो।
बुलंदियों की चाहत ही पंखों को परवाज देती है।
अंधेरे के साए भी अक्सर पीछा करते रहते हैं।
तकदीर बहाने से रोज नए नए लिबाज देती है।
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश