उजड़ रहे घरों को फिर बसाइए ज़मीन पर।
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फ़लक फ़लक भटक लिए तो आइए ज़मीन पर।
उजड़ रहे घरों को फिर बसाइए ज़मीन पर।
ख़ुदा बनें यूं चाहतों में दफ्न आदमी न हो।
सो आदमी को आदमी बनाइए ज़मीन पर।
बसात में ज़हर घुला मिला दिखा ये सोचकर।
समय की मांग है पियूष लाइए ज़मीन पर।
दिखाएगी ज़हान को वो आसमान चूमकर।
सो बेटियों को आप अब बचाइए ज़मीन पर।
गगन पे हक़ है आपका ये आप का ही देश है।
तो अपनी जान तक यहां लूटाइए ज़मीन पर।
©®दीपक झा “रुद्रा”