उच्चतम हो गए हो
मेरे जीवन में जब से तो तुम आ गए हो
रिक्त आकाश घने बादल सा छा गए हो
बरस सावन की फुहारों सा तुम गए हो
हृदय के अन्दर हरियाली सा छा गए हो
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जहां मैं चाहा था तुम वहीं मिल गए हो
जो कहना मुझे था वही कह तो गए हो
रग-रग में तो हवाएं बनकर घुल गए हो
शीत की गुनगुनी धूप तुम खिल गए हो
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बन सुबह की पहली किरन आ गए हो
तुम बिखरी हुई लालिमा सा भा गए हो
पक्षियों का मधुरम गीत तुम गा गए हो
तुम फूल को तो सुगंध से मिला गए हो
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संबोधनो में प्रिय से प्रियतम हो गए हो
जरुरत पड़ी तुम अधिकतम हो गए हो
स्वयं की अपेक्षा में न्यूनतम हो गए हो
मानकों में खरा तो उच्चतम हो गए हो
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तम भ्रम दूर कर तुम प्रकाश हो गए हो
ऊंचाइयों में तो तुम आकाश हो गए हो
गहराइयों में तुम समन्दर सा हो गए हो
जब मैंने पुकारा मुकद्दर सा आ गए हो
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जहर पीना पड़ा तो नीलकंठ हो गए हो
जब भी मैं खोया तुम हनुमंत हो गए हो
त्यागना पड़ा जब तुम रघुवंश हो गए हो
पड़ा कंस को मारना श्रीकृष्ण हो गए हो
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तुम तो वन्दना के प्रथम वन्द हो गए हो
ग़जल गीत कविता सब छन्द हो गए हो
सुर लय संगीत गीत सारा ही हो गए हो
ऋतु वर्षा में नदी सा स्वछन्द हो गए हो
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-रामचन्द्र दीक्षित ‘अशोक’