उकसा रहे हो
उकसा रहे हो
“मोबाइल की घंटी बजी, हैल्लो क्या हाल है विकास?”
“कविवर मैं मजे में हूँ। आप बताइए कैसे हैं?”
“मैं भी मजे में हूँ। आपने यूटयूब पर वायरल मेरी नई कविता सुनी।”
“जी हाँ कविवर सुनी।”
“लेकिन आपने उस पर न तो कॉमेंट किया और न ही शेयर की। खैर छोडिए पाठकों ने मेरी कविता को हाथों-हाथ लिया। देखते ही देखते दो लाख व्यूवज हो गए।”
“कॉमेंट क्या करता? आपने तो कविता ही अधूरी लिखी है। उसे पूरा कर देते तो मैं कॉमेंट भी करता।”
“अधूरी! यही तो समस्या है, तुम गैर-साहित्यिक लोगों में। कविता की जानकारी तो है नहीं, उल्टे कविता को ही अधूरी बता रहे हो।”
“कविवर अपनी कविता में आपने सैनिक की वीरता का चित्रण तो बहुत सुन्दर किया है। लेकिन….”
“लेकिन वेकिन क्या?”
“कविवर अपनी कविता में सैनिक की वीरता के साथ-साथ उसकी परेशानियों का भी वर्णन कर देते।”
“लगता है, आपने कविता पूरी तरह पढ़ी नहीं। उसमें मैंने लिखा है कि सैनिक -45 डिग्री ठंडे तापमान में, तपते रेगिस्तान में, बाढ़ में, अकाल में भी सीमाओं की रक्षा करते हैं।”
“यह सब तो आपने लिखा है। लेकिन अग्निवीर व अर्धसैनिक बल के जवानों को न तो पैंशन और न ही शहादत उपरांत शहीद का दर्जा मिलता। इन को भी कविता में शामिल करते, तब तो कविता बनती।”
”आप तो मुझे सरकार के विरुद्ध उकसा रहे हो।”
-विनोद सिल्ला