ई-रिक्शा का दर्द ( लघुकथा )
ई-रिक्शा का दर्द (लघुकथा )
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त्योहार का मौसम आते ही बेचारी ई-रिक्शा आकर एक तरफ खड़ी हो गई। शहर की व्यस्त सड़कों पर उसको चलने-फिरने की मनाही थी । बेचारी क्या करती ,चुपचाप अपनी बदकिस्मती का तमाशा देखती रही।
उदास खड़े-खड़े उसकी निगाह एक सवारी की तरफ गई । वह घुटनों में तकलीफ के कारण चलने-फिरने से मजबूर एक महिला थी । ई-रिक्शा जानती थी कि इनके पास न तो स्कूटर बाइक है और न ही इन्हें स्कूटर बाइक चलाना आता है । ई रिक्शा की तरह ही यह सवारी भी अपनी दुरावस्था पर आँसू बहा रही थी । उसे घर से बाहर निकलने की तो इजाजत थी लेकिन वह पैदल चल नहीं सकती थी । ई-रिक्शा उपलब्ध नहीं थी और स्कूटर-बाइक उसके पास थी नहीं ।
ई- रिक्शा काफी देर तक व्यवस्था की खराबियों और खामियों को देखती रही। उसकी आँखों के सामने से स्कूटर और बाइक धड़ल्ले से निकल रहे थे । स्कूटर और बाइक जाने पर तो ई रिक्शा को बुरा नहीं लग रहा था लेकिन सड़कों के दोनों तरफ जब ई-रिक्शा ने यह देखा कि छह फीट जगह इन बाइकों ने घेर रखी है ,तो उसे दुख हुआ ।
सोचने लगी -“क्या सड़क केवल हम ही घेरतेते हैं ? यह जो बाइके खड़ी हुई हैं और घंटों खड़ी रहती हैं ,क्या इनसे सड़क पतली नहीं हो गई ?
सोचते सोचते ई-रिक्शा की आँख में आँसू आ गए । वह रोने लगी । तभी एक दूसरी ई रिक्शा ने आकर उसकी आँख से आँसू पोछे और बोली-” रोने से कुछ नहीं होगा । अपनी परेशानी को जोरदार आवाज में नारा बनाकर हवा में गूँजने के लिए छोड़ दो । एक दिन तुम्हारा दुखड़ा जरूर सुना जाएगा । दिक्कत जरूर सुनी जाएगी ।”
ई रिक्शा ने नवागंतुक सहृदय दूसरी ई रिक्शा से मुस्कुराते हुए कहा “बहन ! तुम ठीक कह रही हो । एक दिन आएगा ,जब सड़कों के दोनों तरफ बाइके खड़ी नहीं होंगी और तब चौड़ी सड़क पर हम भी सवारियाँ लेकर निकल सकेंगे ।”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451