ईश !
ईश
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मात, पिता, गुरु, भ्रात,भग्नि, सुत, मीत, सुता में ईश अहो ।
सूर्य, चन्द्र, खग वृंद, प्रकृति में, दिखा नहीं क्यों ईश कहो ।।
जीव मात्र में नूर उसी का, फिर भी नजर नहीं आया ।
दीपक लेकर ढूँढ रहे हो , पर न कहीं उसको पाया ।।
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आँखों वाले अंधे हम ।
उचका देते कंधे हम।।
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राधे …राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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