ईश की टीष
रे मनुष्य,
मेरे कारखाने का
तू था मास्टरपीस,
तुझे बना कर मैंने थी
ली राहत की साँस
की अब तू बनेगा
मेरे ही कई कटपीस,
दुनिया के चराचर
पा कर तेरा सहकार
हो जायेंगे धंन्य,
लेकिन तू तो निकल मूर्धन्य !
बता कर अपने विधाता को ही धता,
कर रहा अट्टहास,
कर कर मेरा उपहास
देने लगा मुझको ही चुनौती !
वसूलता बेख़ौफ़ मेरे ही नाम पर
खुले आम फिरौती!!
कर के क़ैद मुझे
मंदिर, मस्जिद, गिरजे में,
हो चला क्यों स्वछन्द ?
क्यों कर रहा दोहन मेरी क़ायनात का
हो कर निर्द्वन्द?
बहुत पीछे छोड़ दिया तूने
नभ-जल-थलचरों की हिंसा को!
कत्ल किया तूने
सत्य, करुणा, आदर्श,अहिंसा को !!
संवेदनाये हुईं सारी तिरोहित,
किरदार तेरा हो गया क्यों इतना शुष्क!
की वाकई पछतावे से अब तो
होता गला मेरा खुश्क !!
जो दे बैठा तुझ फरामोश को मैं
तनिक सा मस्तिष्क!तनिक सा मस्तिष्क!! तनिक सा मस्तिष्क!!!