ईश्वर से बात
एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो हमारे घर आकर उसके बीमार पिता से मिलें , प्रार्थना करें। बेटी ने यह भी बताया कि उसके बुजुर्ग पिता पलंग से उठ भी नहीं सकते ? संत ने बेटी के आग्रह को स्वीकार कर लिया।
कुछ समय बाद जब संत घर आये तो उसके पिताजी पलंग पर दो तकियों पर सिर रखकर लेटे हुये थे और एक खाली कुर्सी पलंग के पास पड़ी थी। संत ने सोचा कि शायद मेरे आने की वजह से यह कुर्सी यहां पहले से ही रख दी गई हो !
संत ने पूछा – मुझे लगता है कि आप मेरे ही आने की उम्मीद कर रहे थे । पिता नहीं तो , आप कौन हैं ?
संत ने अपना परिचय दिया और फिर कहा कि मुझे यह खाली कुर्सी देखकर लगा कि आप शायद मेरे आने का इंतजार कर रहे थे ?
पिता , ओह यह बात नहीं है ! आपको अगर बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाजा बंद करेंगे क्या ? संत को यह सुनकर थोड़ी हैरत हुई , लेकिन फिर भी उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया।
पिता बोले कि दरअसल इस खाली कुर्सी का राज मैंने आज तक किसी को भी नहीं बताया , अपनी बेटी को भी नहीं ।
पूरी जिंदगी मैं यह जान नहीं सका कि प्रार्थना कैसे की जाती है ? मंदिर जाता था , पुजारी के श्लोक सुनता था , वो तो सिर के ऊपर से गुज़र जाते थे। कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता था। मैंने फिर प्रार्थना की कोशिश करना छोड़ दिया , लेकिन चार साल पहले मेरा एक दोस्त मुझे मिला। उसने मुझे बताया कि प्रार्थना कुछ और नहीं , भगवान से सीधे संवाद का माध्यम होती है। उसी ने सलाह दी कि एक खाली कुर्सी अपने सामने रखो , फिर विश्वास करो कि वहाँ भगवान खुद ही विराजमान हैं। अब भगवान से ठीक वैसे ही बात करना शुरू करो , जैसे कि अभी तुम मुझसे कर रहे थे ।
मैंने ऐसा ही करके देखा , मुझे बहुत अच्छा लगा। फिर तो मैं रोज दो – दो घंटे ऐसा करके देखने लगा , लेकिन मैं यह ध्यान रखता था कि मेरी बेटी कभी मुझे ऐसा करते न देख ले । क्योंकि मुझे डर था कि अगर वह देख लेती , तो वह मुझे पागल समझने लगती और परेशान हो जाती या फिर वह फिर मुझे मनोचिकित्सक के पास ले जाती ।
यह सब सुनकर संत ने बुजुर्ग के लिए प्रार्थना की , सिर पर हाथ रखा और भगवान से बात करने के क्रम को जारी रखने के लिए कहा। संत को उसी दिन दो दिन के लिए शहर से बाहर जाना था , इसलिये वे विदा लेकर चले गये।
दो दिन बाद बेटी का फोन संत के पास आया कि जिस दिन पिताजी आपसे मिले थे , पिता जी की उसी दिन कुछ घंटे बाद ही मृत्यु हो गई थी । संत ने पूछा कि उन्हें प्राण छोड़ते वक्त कोई तकलीफ तो नहीं हुई ?
बेटी ने जवाब दिया – नहीं। मैं जब घर से काम पर जा रही थी , तो उन्होंने मुझे बुलाया , मेरा माथा प्यार से चूमा। यह सब करते हुये उनके चेहरे पर ऐसी शांति थी , जो मैंने पहले कभी नहीं देखी थी । जब मैं वापस आई , तो वो हमेशा के लिए आंखें मूंद चुके थे। लेकिन मैंने एक अजीब सी चीज भी देखी ।
संत ने पूछा कि ऐसा क्या देखा तुमने ? तो उसने बताया कि पिताजी ऐसी मुद्रा में थे जैसे कि खाली कुर्सी पर किसी की गोद में अपना सिर झुकाये हों । संत जी , वो क्या था ?
यह सुनकर संत की आंखों से आंसू बह निकले। बड़ी मुश्किल से वे बोल पाये – कि काश , मैं भी जब इस दुनिया से जाऊं तो ऐसे ही जाऊँ , बेटी ! तुम्हारे पिताजी की मृत्यु भगवान की गोद में हुई है। उनका सीधा सम्बन्ध भगवान से था। उनके पास जो खाली कुर्सी थी , उसमें भगवान बैठते थे और वे सीधे उनसे बात करते थे। उनकी प्रार्थना में इतनी ताकत थी कि भगवान को उनके पास आना पड़ता था ।