ईश्वर नंगा हो रहा है।
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ईश्वर नंगा हो रहा है।
ईश्वर के रूप,स्वरूप को लेकर
जब-जब दंगा हो रहा है।
ईश्वर नंगा हो रहा है।
ईश्वर को अर्पित पुष्प,गंध,भोग पाकर
तरलता त्याग जब,ठोस गंगा हो रहा है।
ईश्वर नंगा हो रहा है।
यौनिक उत्तेजना से भर मनुष्य
जब-जब ‘बिल्ला और रंगा’# हो रहा है।
ईश्वर नंगा हो रहा है।
हृदय को चीर देने वाले दृश्य
चीरते नहीं, चिर कर खुद
जब पतंगा हो रहा है।
ईश्वर नंगा हो रहा है।
मनुष्य,मानवीय तन-मन की शपथ लेकर
जब-जब साबित पसंगा हो रहा है।
ईश्वर नंगा हो रहा है।
ईश्वर के ही नाम पर क्योंकि
सबसे ज्यादा हिंसा हो रहा है।
ईश्वर नंगा हो रहा है।
प्रजातंत्र का वाहक क्योंकि
राजतन्त्र पोत कर रँग-बिरंगा हो रहा है।
ईश्वर नंगा हो रहा है।
ईश्वर के आलयों में ही क्योंकि
बाबाओं का अनावृत जंघा हो रहा है।
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#मुझे याद है कि चौधरी चरण सिंह के प्रधान मंत्रित्व काल में यह नाम कुख्यात हो उछला था।
(पतंगा स्वाहा के अर्थ में), (पसंगा=अत्यंत छोटा)