ईश्वर गणित है
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ईश्वर गणित है
गणित, प्रारंभ और अंत से पूर्व का.
होना प्रारंभ नहीं है.
नहीं होना अंत नहीं है.
होना और नहीं होना गणित है.
अत: होना और नहीं होना ईश्वर है.
गणित ने स्वयं की सृष्टि का आकार
ब्रह्म-सृष्टि से पूर्व गढ़ा.
फिर ब्रह्म बन रचना का मन बनाया.
प्रारूप तो गणित के कोख से जन्मा.
कर्म स्थापित करने गणित बना विश्वकर्मा.
गणना की व्युत्पत्ति हुआ ही होगा गणित-धर्मा.
तारों,नक्षत्रों,ग्रहों का आकार और परिभ्रमण.
उनके आपसी व्यवहार का एवम् गणन.
अनायास नहीं, गणित के रसायन में रहा होगा.
और रसायन के गणित ने भौतिकता गढ़ा होगा.
तब.
प्राण के हर कण तथा क्षण में जीवित है गणित.
इसलिए ईश्वर गणित है.
व्योम की धरती में गणित का अनन्त विस्तार है.
गणित के सूत्रों का खुद गणित ही सूत्रधार है.
प्राणी में प्राण करता है योग,वियोग,गुणन,विभाजन.
प्राण को प्राण देता है गणित और करने का प्रण.
स्पंदन है इस महत् ब्रह्माण्ड का चिरस्थायी मूल.
स्पंदन गणित के सूत्र से रहा है फल-फूल.
अभी जो कुछ वृहत् ब्रह्माण्ड में है दृश्य.
उससे अधिक ‘सत्य’ अबतक है अदृश्य.
उस अदृश्य में स्यात् फैला है स्पंदन.
उस स्पंदन में स्यात्
समाहित है ‘आग का स्फुरण’.(ऊर्जा)
स्फुरण, गणित का संकल्प करके धारण.
स्वयंभू हो,हो जनते हों परमाणवीय कण-विकण.
स्पंदन चुम्बकीय तरंगों का जनक.
चुम्बक गति करता है उत्पन्न.
सर्वदा और सर्वथा गतिशील है गति.
गति विद्युत कणों के प्रवाह की नियति.
गणित इसलिए पहला ईश्वर है पहला स्रष्टा.
रचना गणित का कोई षड्यंत्र तो नहीं
या षड्यंत्र का द्रष्टा.
क्योंकि सारा ही दृश्य जगत सर्वदा अस्थिर.
क्योंकि सारा ही दृश्य जगत कभी रहा नहीं अजर-अमर.
गणित विष्णु का सुदर्शन चक्र है और शिव का त्रिशूल.
सब कुछ नष्ट कर देते ये देवता,रहता है गणित का मूल.
रचना के कणों में योग है.
कणों के ध्वंस में वियोग.
होती है गुणन से ब्रह्म की रचना.
विभाजन भंग करता है रचना ही नहीं रचना का कोख.
सृष्टि में हर रचना का स्वरूप
गणित के गुणन से रचित.
कमल के पुष्प दल,विल्व पत्र का रूप.
गणित के ही नियमों से है खचित.
पिण्ड का बीज सुरक्षित रखने पिंड में
कितने! गणित लगे हैं पता है.
ईश्वर का गणित होना सच मानो
नहीं कोई किस्सा या कथा है.
निराधार नक्षत्र, तारे
ब्रह्माण्ड को रचनेवाले वाष्प,तरल,ठोस.
टिके हैं विस्तृत व्योम में क्योंकि
गणित का अति विशाल है ज्यामितीय कोष.
गणित के देह में ईश्वर का वास है.
ईश्वर की आत्मा में गणित का निवास है.
इन्सान गणित सही करेगा
तो खोज लेगा ईश्वर एक दिन.
गणित का कोई कोना स्यात् स्पष्ट है नहीं
रहस्य है ईश्वर उघारो सही-सही गिन.
फलों को तोड़ता हुआ नितांत नपा-तुला.
यदि गणित हुआ गड़बड़
तो एक नया गणित जाता है बन.
ईश्वर का होता नवीकरण
फिर नव अंकन से चले सृजन.