ईश्वर के प्रतिरूप
लघुकथा
ईश्वर के प्रतिरूप
पति-पत्नी शाम को टेरेस पर बैठे बतिया रहे है।
पत्नी बोली, “अभी कोरोना से दुनियाभर में हाहाकार मचा हुआ है। मुझे लगता है यह कोरोना तो महज एक शुरुआत है। अब न जाने कब कौन-सा वायरस आकर यूँ तबाही मचा दे।”
पति बोला, “हाँ, यह भी मुमकिन है। वैसै पहले भी ऐसे कुछ वायरस अपना कहर ढा चुके हैं, पर हमारे साइंटिस्ट और डॉक्टर्स देर-सबेर इनका तोड़ निकाल ही लेते हैं।”
पत्नी बोली, “हाँ, सो तो है जी। मैं आज अखबार में एक खबर पढ़ रही थी, जिसके मुताबिक हजारों की संख्या में डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ भी संक्रमित हो रहे हैं। हमारे देश में ही सैकड़ों की संख्या में डॉक्टर्स की मौत हो चुकी है। मैं तो इस रिपोर्ट को पढ़कर ही बहुत डर गई हूँ।”
पति ने कहा, “क्यों भला ?”
पत्नी बोली, “आप पूछ तो ऐसे रहे हैं जैसे आपको कुछ पता ही नहीं। आप ही तो हमारे इकलौते बेटे को डॉक्टर बनाने पर तुले हुए हैं। बेटा भी उसके लिए जी जान से लगा हुआ है।”
पति ने शांत भाव से कहा, “सच कहूँ तो वर्तमान में डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ की सेवा भाव को देखकर मेरा विश्वास और भी प्रबल हो गया है कि ये सचमुच धरती पर ईश्वर के प्रतिरूप हैं। समुद्र मंथन में निकले विष को लोकहित में जिस प्रकार शिव जी ने पी लिया था, उसी प्रकार आज ये लोग कोरोना से लड़ रहे हैं। यही कारण है कि कोरोना से मरने वालों की संख्या, कोरोना से बचने वालों की संख्या से बहुत ही कम है। अब तो मेरी इच्छा और भी बलवती हो गई है हमारी इकलौती संतान डॉक्टर ही बने।”
उन्होंने पत्नी की ओर देखा। उसकी आँखों में संतुष्टि के भाव थे।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़