ईश्वर के नाम पत्र
हे परमेश्वर!
चरण कमलों में सादर
चरण स्पर्श
हे प्रभू! बहुत दिनों से मेरे मन में कुछ विचार आ रहे थे। मन बहुत ही चिंतित और व्याकुल था। मैं अपने अंतर्मन की बात किससे कहूँ। यह समझ में नहीं आ रहा था। लोगों से कहने पर वे तो हँसेंगे या मजाक उड़ाएंगे। रहीम कवि ने कहा था-
“रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी ईठलैहैं लोग सब, बांटी ना लेंहैं कोय।”
इसलिए मेरी आत्मा ने कहा क्यों न भगवान को ही बताऊँ। यह सोचकर मैं आपको पत्र के द्वारा बता रही हूँ। मुझे विश्वास है कि आप जरुर कुछ अपनी सलाह देंगे। वैसे तो आप सबकुछ जानते हैं। हम सब हमेशा से यह कहते आ रहे हैं कि आप सर्वशक्तिमान और अन्तर्यामी हैं। आप सबकी बातों को जानते हैं। सबको उसके कर्मों के अनुसार ही उसका फल देते हैं। यह तो सब ठीक है, लेकिन जब लोग कहते हैं कि उसके पिछले जन्म के कर्मों का फल है। तब मैं सोच में पड़ जाती हूँ, हमने पूर्व जन्म में क्या सही और क्या गलत किया है। यह हमें मालूम नहीं है फिर उसकी सजा क्यों? यह तो सिर्फ आपको ही पता है। इसलिए इस बात के लिए आप भी माफ़ कर देते तो अच्छा रहता। मेरे मन में कुछ और भी प्रश्न हैं। उन प्रश्नों का उत्तर आप ही बता सकते है।
हे भगवान! आज के समय में लोग बहुत ही स्वार्थी हो गए हैं। स्वार्थ वश ही एक दूसरे से बातें करते हैं। पृथ्वी पर इतना कुकर्म बढ़ गया है कि बेकसूर जीव-जंतु मारे जा रहे हैं। छोटी-छोटी बच्चियों से बलात्कार, गुंडा-गर्दी, हत्याएँ और सबसे बड़ी बात यह है कि राजनीति का स्तर इतना नीचे गिर गया है जिसका मैं बया नहीं सकती हूँ। प्रभु साधु-संतों की भी हत्या हो रही है। यहाँ तक की धन के लोभ में अपना जना माँ-बाप की हत्या कर दे रहे हैं। यह सब देखकर मन बहुत ग्लानी से भर उठता है। मुझे याद है भगवान् जी 1958 में प्रदीप कुमार जी ने एक गीत लिखा था।
“देख तेरे संसार कि हालत क्या हो गई
भगवान! कितना बदल गया इंसान।”
इस गीत में उस समय कि स्थिति और आज की स्थिति में कोई भी परिवर्तन नहीं आया है।
आज 2020 है करीब 70 वर्ष हो गए आज भी इंसान कि हालत में कोई भी बदलाव नहीं है। भगवान जी क्या ऐसी ही दुनिया रहेगी तो आपने दुनिया बनाई क्यों?
“दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में
समाई? काहे को दुनिया बनाई?”
अभी सुशांत नाम के होनहार बच्चे का क़त्ल कर दिया गया है। वह तो आपके पास ही होगा। आप उससे पूछ लीजियेगा। भगवान् जी आजकल एक ‘कोरोना’ नामक बिमारी भी आया है, जिससे समस्त विश्व प्रभावित है। हे भगवन! हमने सुना और पढ़ा है कि जब-जब धरती पर पाप बढ़ जाता है तब-तब आप पापियों का विनाश करने और धर्म की रक्षा करने के लिए धरती पर आते हैं।
“जब-जब होई धरम कै हानि। बाढ़ई असुर, अधम अभिमानी।।
करहि अनीति, जाई नहीं बरनी। सिदही विप्र, धेनु सुर धरनी।।
तब-तब प्रभु धरि, विविध शरीरा। हरहिं कृपानिधि, सज्जन पीड़ा।।
अब आप आइए और इस धरा को बचा लीजिए। हे मेरे भगवन! अब आप एक बार फिर से इस पूण्य भूमि पर आइए। आप से करबद्ध प्रार्थना करती हूँ। अब मैं पत्र लिखना बंद कर रही हूं। और आप तो सबकुछ जानते ही है।
आपकी सदा प्रार्थी रहूंगी
आपके आशीर्वाद को ही मैं पत्र का जबाब समझूंगी। आप अपनी कृपा सदा बनाएं रखिएगा।
इन्दु सिंह, हैदराबाद