ईश्वर का “ह्यूमर” रचना शमशान वैराग्य – Fractional Detachment
किसी भी प्राणि का जन्म लेना और अंतोगत्वा मृत्यु की प्राप्ति इस संसार का सबसे बड़ा और एकमात्र अकाट्य सत्य है ।
अंतिम क्षणों में तो अपना शरीर भी साथ नहीं जाता और इसकी क्षणभंगुर अनुभूति किसी दाहसंस्कार में चिता को जलते वख्त होती है, शायद हम सभी, एक पल, इस सत्य के विषय में सोचने पर विवश होते होंगे कि हम क्यों सिर्फ मोहजाल में फँस के चीज़ों को बटोरने में लगे रहते हैं !
और यह “शमशानवैराग्य” की मनःस्थिति जैसे ही दाहसंस्कार के बाद हम शमशानभूमि से बाहर कदम रखते है वो सारे विचार / वह वैराग्य भाव वहीं शमशान में पीछे छूट जाते हैं और फिर से संसार की मायावी संरचना में स्वतः उलझ जाते हैं !
“मोह” का “क्षय” ही शायद “मोक्ष” है –
पर ईश्वर की इस बड़ी ही “ह्यूमरस” रचना को हम “अनुभव तो करते हैं, पर अनुसरण नहीं कर पाते है हम अपने पीछे सिर्फ और सिर्फ अपने कर्मों की गाथा, लेखा-जोखा छोड़ जाते हैं जो कुछ दिनों तक लोगों के मानस पटल में एक याद की तरह थोड़े दिनों तक रहती है और फिर धीरे – धीरे, एक कागज़ पर स्याही से लिखी पंक्तियों की तरह धूमिल हो जातीं हैं !