ईश्वर का अप्रिम सौंदर्य वर्णन
सुन्दर श्यामल मनोहारी ,
छवि तुम्हारी अति प्यारी ।
श्यामल कुंतल केश धनेरे ,
सूरज और चंदा नयन तेरे ।
या यूं कहूं तेरे कमल समान ,
सुंदर नयन और मृदु मुस्कान ।
स्वर वीना की झंकार के जैसे ,
कानों में रस घोले वो जैसे ।
स्वभाव में शीतलता उनके कभी ,
और ओजस्वी गुण मिले कभी ।
दुष्ट जनों के काल भी वोह बने ,
और कभी भक्त जनों के सखा बने ।
प्रकृति को देखूं जब कभी भी मैं ,
उनकी ही छाया सी देखती हूं मैं ।
ये नदियां,सागर ,पर्वत और धरा ,
सभी में छलके प्रतिबिंब तेरा ।
फूलों और कलियों ने जो रंगत पाई ,
वो तेरे रंगीन होंठो से ही तो पाई ।
प्रभु ! तुम्हारे सुन्दर रूप का वर्णन ,
और कैसे करूं तुम्हारे गुणों का वर्णन ?
शेषनाग और ब्रह्मा जी भी न कर सकें ,
तो मेरी कलम भी यह सामर्थ्य न कर सके ।
मगर फिर भी मेरा अनुरागी मन ,
करेगा सदा गुणगान तेरा मेरे जीवन धन!!
मैं न मांगू तुझसे कभी ढेर सारी संपत्ति ,
मुझे तो चाहिए बस तेरी अनन्य भक्ति।