ईश्वर का अस्तित्व एवं आस्था
ईश्वर अथवा अलौकिक शक्तियों का अस्तित्व है या नहीं यह आदिकाल से एक शोध का विषय है ।
ईश्वर अथवा अलौकिक शक्तियों पर आस्था रखने वालों का यह मानना है कि ईश्वर का अस्तित्व है वही इस ब्रह्मांड का रचयिता है और इस ब्रह्मांड के समस्त जीव एवं निर्जीव अस्तियों का वाहक एवं संचालक है।
जबकि वैज्ञानिक तर्क की कसौटी पररखने वालों का विचार है कि ब्रह्मांड में इस प्रकार की अलौकिक शक्तियों का कोई तर्क पूर्ण वैज्ञानिक आधार नहीं है और यह एक कपोल कल्पित अवधारणा मात्र है।
विभिन्न धर्मावलंबियों की सर्वसम्मत धारणा है कि ब्रह्मांड में निराकार रूप में ईश्वर का अस्तित्व है , जो उनके संत महात्माओं द्वारा उसके अस्तित्व की अनुभूति परआधारित है।
ब्रह्मांड में किसी पदार्थ के अस्तित्व के अनेक आयाम है जिसे वैज्ञानिक तथ्यों द्वारा प्रमाणित किया गया है।
जिसमें भौतिक रूप में दृश्य एवं अदृश्य पदार्थ सम्मिलित है। अदृश्य रूप में हवा , प्राकृतिक गैस , एवं उनके रूपांतरण के कारण ठोस एवं द्रव रूप विद्यमान रहते हैं।
अदृश्य रूप में गुरुत्वाकर्षण बल एवं प्राकृतिक शक्तियों का बल , जैविक बल , मशीनी प्रक्रिया द्वारा पदार्थों के रूपांतरण के फलस्वरूप निर्मित तकनीकी बल, पदार्थो की परस्पर रासायनिक क्रिया द्वारा उत्पन्न रासायनिक बल , तथा नाभिकीय अभिक्रियाओं से उत्पन्न विनाशकारी परमाणु बल के रूप मे जाना जाता है।
युग-युगांतर में विभिन्न शोध एवं आविष्कारों के माध्यम से मावन जीवन में आए परिवर्तन से असंभव से संभव की दिशा में धारणाएं प्रवृत्त हुई हैं।
अतः हम कह सकते हैं कि जिन्हें हम किसी तर्कपूर्ण वैज्ञानिक प्रमाण के अभाव में अतीत में असंभव मानते थे , उनकी सत्यता वर्तमान में अविष्कारों एवं अनुसंधान के आधार पर प्रमाणित की गई है।
अतः जो वर्तमान में असंभावित धारणाएं हैं, वे भविष्य में संभव सिद्ध की जा सकती हैं।
जहां तक ईश्वर के अस्तित्व की अनुभूति का प्रश्न है , यह किसी ने किसी रूप में मनुष्य को अपने जीवन काल में कभी न कभी इसका अनुभव होता है , परंतु हम इस इस विषय पर गंभीर चिंतन नहीं करते हैं।
कभी-कभी हमें यह लगता है कि कोई अदृश्य शक्ति हमे किसी समस्या के निदान हेतु कोई कार्य करने के लिए प्रेरित करती है , जिसके विषय में हमने कभी सोचा भी ना था, और इस प्रकार उस समस्या का निदान सरलता पूर्वक हो जाता है जिसे हम अत्यंत जटिल समझते थे।
इसी प्रकार हमें कोई शक्ति आने वाले खतरे का आभास दे देती है और हमें उस आपदा से स्वयं को बचाने के लिए प्रेरित करती है। और इस प्रकार हम अपने आप को आने वाले खतरे से सुरक्षित कर लेते हैं।
कभी-कभी इस प्रकार की दुर्घटनाएं होती हैं , जो हमारे समझ से परे होती हैं और हम उस दुर्घटना के प्रभाव से निरापद रहते हैं । हम समझ नहीं पाते कि ये क्या हुआ ?और हम कैसे ? सुरक्षित बच निकले !
इस प्रकार की घटनाओं को हम संयोग की श्रेणी में नहीं रख सकते क्योंकि उनकी गंभीरता को दृष्टिगत रखकर विचार करें तो सुरक्षित बच निकलना मात्र संयोग नहीं हो सकता है , जब तक कोई अदृश्य शक्ति हमारी सहायता ना करें तो इस प्रकार की दुर्घटनाओं से बच निकलना नितांत असंभव है।
कई बार मैंने जिंदगी और मौत से लड़ते हुए लोगों को देखा है जो मौत की कगार से सुरक्षित बच गए जो किसी चमत्कार से कम नहीं था। यह किसी अलौकिक शक्ति का प्रताप था जो मौत के मुंह से लोगों को बचाकर निकाल ले गया।
कई बार हम इस प्रकार कार्य करते हैं जिससे हमें निश्चित सफलता प्राप्त होती है परंतु हम यह समझने में असमर्थ रहते हैं हमने ऐसा क्यों ? और कैसे ? कर दिया।
क्या यह हमारे कार्य को नियंत्रित करने का किसी अलौकिक शक्ति का प्रताप था ? जो हमारी समझ से परे है।
मैं किसी भी प्रकार के अंधविश्वास का समर्थक नहीं हूं ,
परंतु मेरे जीवन की अनुभूतियाँ मुझे यह सोचने के लिए बाध्य करती है कि क्या किसी अलौकिक शक्ति का अस्तित्व विद्यमान है ? जो हमारी सोच एवं क्रियाकलापों को नियंत्रित करता है।
जीवन में कुछ ऐसा तो है जिसमें किसी अलौकिक कृपा का वरद्हस्त होता है , जिससे जीवन में सफलता या असफलता सुनिश्चित होती है।
जीवन में सत्यनिष्ठा एवं कर्मनिष्ठा व्रत होते हुए भी कुछ कर्मयोगी अपने जीवन में सफलता से दूर रहते हैं , एवं दुःखी जीवन व्यतीत करते हैं।
इसके विपरीत इन सब का पालन न करने वाले कुछ लोग सरलता से सफलता प्राप्त कर लेते हैं , एवं वैभवशाली सुखी जीवन व्यतीत करते हैं।
यह विडंबना एक कटु सत्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता है।
मेरा तो यह मानना है कि आध्यात्म उन लोगों द्वारा प्रचारित एवं प्रसारित किया जाता है जिन्होंने या तो जीवन में समस्त भौतिक सुखों को भोगकर भौतिक जगत से विरक्त होकर सन्यास ग्रहण कर लिया है ,
या तो उन लोगों ने जिन्होंने जीवन में दुःखों एवं असफलताओं का सामना करते हुए जीवन से हार मानकर सामाजिक जीवन को त्याग कर सन्यास लिया है।
अतः आध्यात्मवाद में विरक्ति प्रमुख अंग है। जो मानव को सामाजिक जीवन के कर्तव्य से विमुख करता है।
ईश्वर में आस्था एवं आध्यात्म का कोई सीधा संबंध नहीं है।
ईश्वर अथवा अलौकिक शक्ति पर विश्वास रखने वाले के लिए आध्यात्मिक होना आवश्यक नहीं है।
इसी प्रकार जीवन से विरक्ति एवं सामाजिक दायित्व से विमुखता ईश्वर को पाने का एकमात्र मार्ग नहीं है।
वर्तमान में ईश्वर में आस्था को धर्मांधता से जोड़कर देखने का प्रयास किया जा रहा है जो सर्वथा अनुचित है।
ईश्वर में आस्था रखने वाले के लिए धार्मिक होना भी आवश्यक नहीं है।
ईश्वर से प्रेम एवं श्रृद्धा उसके अस्तित्व पर विश्वास होना है ,ना कि ईश्वर को विनाशक के रूप में प्रतिपादित कर लोगों में भय पैदा कर रूढ़िवाद एवं धर्मांधता फैलाना।
अंत में यह कहना चाहूंगा कि किसी अलौकिक शक्ति जिसे हम परमात्मा या ईश्वर कहते हैं का अस्तित्व इस ब्रह्मांड में विद्यमान है , यह उस पर आस्था रखने वालों को उसके अस्तित्व की अनुभूतियों के द्वारा समय- समय पर प्रमाणित करता रहेगा।