ईश्क में यार ये जुदाई है
ईश्क में यार ये जुदाई है।
सिर्फ माशूक ही दवाई है।
कैद में मर्ज़ के कभी आओ,
तब तो मुश्किल कभी रिहाई है।
ज़ख्म गर ईश्क अन्जाने में दे,
देता रो-रो के दिल दुहाई है।
यारे दीदार हो कभी पलभर,
तो समझ रुत सुहानी आई है।
ईश्क की राह में बड़े कांटे,
इक कुआँ दूजी ओर खाई है।
होश सम्भाल ‘भारती’ थोड़ा,
यार ने आँख से पिलाई है।
ईश्क में यार ये जुदाई है।
सिर्फ माशूक ही दवाई है।
सुशील भारती, नित्थर, कुल्लू (हि.प्र.)