ईर्ष्या
स्व आकलन की कमी एवं असफलता की नकारात्मकता से प्रभावित हीन भावना असफल व्यक्तियों में सफल व्यक्तियों के प्रति ईर्ष्या को जन्म देती है।
जीवन में महत्वाकांक्षाओं एवं अपेक्षाओं को प्राप्त करने के लिए उनके अनुरूप पर्याप्त लगन एवं कर्मनिष्ठा के अभाव में असफल होने पर अवसाद से व्यक्तिविशेष कुंठा ग्रस्त हो जाता है ।
कभी-कभी वह अपनी असफलता के लिए आत्मचिंतन न कर दूसरों को दोषी मानने लगता है, तथा नकारात्मक मनोग्रंथि का शिकार हो जाता है।
वह असफलता को चुनौती मानकर सफलता हेतु सतत् प्रयत्नशील रहने के स्थान पर सफल व्यक्तियों से द्वेष एवं ईर्ष्या करने लगता है।
द्वेष एवं ईर्ष्या का प्रमुख कारण समाज में व्याप्त विसंगतियां भी हैं। किसी वर्ग विशेष को अधिक संसाधन एवं वरीयता उपलब्ध है ,जबकि अन्य वर्गों को उनसे वंचित रखा जाता है , जिसके कारण जनसाधारण में उस वर्ग विशेष के लिए द्वेष एवं ईर्ष्या उत्पन्न होना स्वाभाविक प्रक्रिया है ।
शासन द्वारा सरकारी पदों में में चयन हेतु आरक्षण नीति एवं पदोन्नति में वरीयता का प्रावधान भी इस प्रकार की भावना को उत्पन्न करने का प्रमुख कारण है। अभ्यर्थी का चयन प्रतिभा के स्थान पर जाति एवं वर्ग विशेष के आधार पर करने पर प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों में उन सभी अभ्यर्थियों के प्रति द्वेष एवं ईर्ष्या की भावना उत्पन्न होना जिन्हें आरक्षण का लाभ प्राप्त है , उनके कुंठाग्रस्त होने का परिणाम है।
इसी तरह व्यावसायिक अध्ययन एवं प्रशिक्षण महाविद्यालयों में प्रवेश हेतु चयन प्रक्रिया में आरक्षण का प्रावधान, चयन वंचित प्रतिभाशाली विद्यार्थियों में असंतोष एवं विद्रोह का मुख्य कारण है।
देश में वोट बैंक राजनीति के चलते वर्ग भेद ,जाति भेद एवं धर्म एवं संप्रदाय के आधार पर द्वेष , ईर्ष्या एवं असंतोष के वातावरण का निर्माण किया जाता है , जो देश में व्याप्त कुत्सित मंतव्य युक्त स्वार्थपरक राजनीति का परिचायक है।
जब तक देश की राजनीति में सौहार्द, सर्वधर्म समभाव , एवं सांप्रदायिक सहअस्तित्व की भावना का विकास नहीं होता, तब तक इस प्रकार की नकारात्मक भावनाओं को उत्पन्न होने से रोका नहीं जा सकता है।